इक रोज़ बचपन से मुलाक़ात हुई ,
उसने पुछा कैसी कट रही है?
मैंने कहा बस कट रही है....
बचपन मुस्कुराया और बोला
कहाँ गई वो बचपन की मुस्कराहट,वो मासूमियत,वो खिलखिलाहट?
आखिरी बार कब जोर से हसे थे?
आखिरी बार कब दोस्त से लड़े थे?
कब सोये थे माँ की गोद मे? कब खाया था पापा की प्लेट मे?
मै गुमसुम उसके प्रश्नों मे जैसे खो सा गया?
सोचने लगा क्या मै इतना बदल गया?
ज़िन्दगी की दौड़ मे कहाँ छोड़ आये वो बचपन..
जब न झूठ का साया था न हार का गम ...
जब आंसू भर के हँसा करते थे...
जब दिल खोल के रोया करते थे
बचपन ने मेरी आँखों मे झाँका और कहा..
मै तुम्हारा अतीत हु पर आज भी तुम्हारे साथ हु..
क्यों इस भीड़ मै खुद को ही खोते जा रहे हो?
थोड़ी सी दौलत शोहरत के लिए अपनों से ही मुह मोड़ते जा रहे हो..
मै सन्न अपनी जगह बैठ गया..
एक मिनट के लिए घबरा गया..
अपनी आखे बंद की ...सारा बचपन नज़र आ गया..
अपने और अपनों का प्यार याद आ गया..
मै जी उठा फिर से...मन नाच उठा फिर से..
ऐसा लगा जैसे बचपन के नाज़ुक हाथो ने फिर से मुझे थाम लिया हो..
नन्ही नन्ही यादो ने जैसे फिर से तन मन गुदगुदा दिया हो....
आज वो दर्द याद आया जब पहली बार साइकिल से सड़क पे गिरा था
आज वो पापा का डर याद आया जब पहली बार घर देर से आया था
आज वो भाई का प्यार याद आया जब उसने पिटने से बचाया था..
आज वो माँ का स्वार्थ याद आया जब उसने रोटी पे अलग से घी लगाया था..
बचपन ने मेरा माथा चूम के कहा..
बचपन तो जीवन का एक पड़ाव है..
अतीत की गहराईयों मे खो जाता है..
पर तू तो इंसान है इतने सुन्दर एहसास को कैसे भूल जाता है?
बचपन न सही उसकी मासूमियत को जिंदा रख..
वो खिलखिलाहट न सही उसकी निश्चल्ता को जिंदा रख..
मैंने बचपन का हाथ थमा और ये वादा किया..
तेरा हर एहसास मै फिर से जियूँगा ...
तेरा हर सबक मै फिर से पढूंगा...
अब मै कुछ भी नहीं चाहता हु
बस एक बार फिर से तुझे जीना चाहता हु......
बस एक बार फिर से तुझे जीना चाहता हु......
बस एक बार फिर से तुझे जीना चाहता हु......
****अपराजिता****
19/oct/2011
उसने पुछा कैसी कट रही है?
मैंने कहा बस कट रही है....
बचपन मुस्कुराया और बोला
कहाँ गई वो बचपन की मुस्कराहट,वो मासूमियत,वो खिलखिलाहट?
आखिरी बार कब जोर से हसे थे?
आखिरी बार कब दोस्त से लड़े थे?
कब सोये थे माँ की गोद मे? कब खाया था पापा की प्लेट मे?
मै गुमसुम उसके प्रश्नों मे जैसे खो सा गया?
सोचने लगा क्या मै इतना बदल गया?
ज़िन्दगी की दौड़ मे कहाँ छोड़ आये वो बचपन..
जब न झूठ का साया था न हार का गम ...
जब आंसू भर के हँसा करते थे...
जब दिल खोल के रोया करते थे
बचपन ने मेरी आँखों मे झाँका और कहा..
मै तुम्हारा अतीत हु पर आज भी तुम्हारे साथ हु..
क्यों इस भीड़ मै खुद को ही खोते जा रहे हो?
थोड़ी सी दौलत शोहरत के लिए अपनों से ही मुह मोड़ते जा रहे हो..
मै सन्न अपनी जगह बैठ गया..
एक मिनट के लिए घबरा गया..
अपनी आखे बंद की ...सारा बचपन नज़र आ गया..
अपने और अपनों का प्यार याद आ गया..
मै जी उठा फिर से...मन नाच उठा फिर से..
ऐसा लगा जैसे बचपन के नाज़ुक हाथो ने फिर से मुझे थाम लिया हो..
नन्ही नन्ही यादो ने जैसे फिर से तन मन गुदगुदा दिया हो....
आज वो दर्द याद आया जब पहली बार साइकिल से सड़क पे गिरा था
आज वो पापा का डर याद आया जब पहली बार घर देर से आया था
आज वो भाई का प्यार याद आया जब उसने पिटने से बचाया था..
आज वो माँ का स्वार्थ याद आया जब उसने रोटी पे अलग से घी लगाया था..
बचपन ने मेरा माथा चूम के कहा..
बचपन तो जीवन का एक पड़ाव है..
अतीत की गहराईयों मे खो जाता है..
पर तू तो इंसान है इतने सुन्दर एहसास को कैसे भूल जाता है?
बचपन न सही उसकी मासूमियत को जिंदा रख..
वो खिलखिलाहट न सही उसकी निश्चल्ता को जिंदा रख..
मैंने बचपन का हाथ थमा और ये वादा किया..
तेरा हर एहसास मै फिर से जियूँगा ...
तेरा हर सबक मै फिर से पढूंगा...
अब मै कुछ भी नहीं चाहता हु
बस एक बार फिर से तुझे जीना चाहता हु......
बस एक बार फिर से तुझे जीना चाहता हु......
बस एक बार फिर से तुझे जीना चाहता हु......
****अपराजिता****
19/oct/2011
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ReplyDeletethis one really touched my heart...its so true...
ReplyDeleteThanx Shashi :)
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