ज़िन्दगी से जाने क्या चाहती हु
हर सांस को जीना चाहती हु
हर बात पे हसना चाहती हु
जाने क्या पीछे छोड़ आई हु
जाने क्या साथ लाइ हु
ज़िन्दगी तू भी अजब है
कभी लहराती पतंग तो कभी बेरंग है
ज़िन्दगी से जाने क्या चाहती हु.......
ये ज़िन्दगी भी जाने कितने रिश्ते साथ लाती है
कुछ रिश्ते खामोश होते हैं फिर भी सब बयां कर जाते हैं
कुछ रिश्ते दूर होते हैं फिर भी पास नज़र आते हैं
कुछ रिश्तों का कोई नाम नहीं होता फिर भी एक एहसास छोड़ जाते हैं
ज़िन्दगी से जाने क्या चाहती हु.......
ऐ ज़िन्दगी मै तुझे जीना चाहती हु
हर एक एहसास को छूना चाहती हु
तेरी बाँहों मे झूलना चाहती हु
तो कभी तेरे तकिये पे सोना चाहती हु
कभी दिल भर आए तो गले लग के रोना भी चाहती हु
ज़िन्दगी से जाने क्या चाहती हु.......
मेरी ज़िन्दगी आम है पर कुछ ख़ास करना चाहती हु
इस बेनाम ज़िन्दगी को एक ख़ूबसूरत नाम देना चाहती हु
ज़िन्दगी से जाने क्या चाहती हु.......
ज़िन्दगी एक बार भरोसा तो कर मुझ पे
क्यों रूठ गई है आज कल तू मुझ से
हर एक हंसी भी उधार सी लगती है अब
आँखों का पानी भी सूख गया
अब तो एहसान कर मुझ पे
ज़िन्दगी से जाने क्या चाहती हु.......
इतनी भीड़ है फिर भी अकेलापन क्यों सताता है?
कहीं फिर से देर न हो जाए ऐसा भय क्यों डराता है?
ज़िन्दगी से जाने क्या चाहती हु.......
बहुत हुआ रूठना अब तो वापस आ जा
मुझे जीने दे मुझे हसने दे
जो खो गया उसे जाने दे
जो पास है उसे निभाने दे
ज़िन्दगी से जाने क्या चाहती हु.......
एक बार फिर से पकड़ मेरा हाथ तू
ले चल मुझे उस ओर जहाँ तेरा साथ हो
जीने की उमंग हो, लहरों सी तरंग हो
ज़िन्दगी से जाने क्या चाहती हु.....
हर सांस को जीना चाहती हु......
हर बात पे हसना चाहती हु.......
****अपराजिता****
26/Sep/2011